हो जाय कुछ ग़लत तो भी, इतना बुरा नहीं होता है l-2
अच्छाई की चादर में,
छिपाकर उसे जितना बुरा होता है l
हो गया कुछ, जो बुरा लगता है,
तो फ़िर न करो उसे l-2
दोहराई गई ग़लती ही, ग़ुनाह होता है l-2
मैं शिकायत करूँ, जिसकी, तुमसे l-2
वही ख़ता ख़ुद करूँ, तो ग़ुनाह होता है l
सीता का हरण,तो ग़लत है ही l-2
पर साधू के वेश में, अक्षम्य अपराध होता है,
ग़ुनाह होता है l-2
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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