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लेखक की तस्वीरVivek Pathak

ख़ुद से बात करो

अपनों को जाना, परायों को समझा-2

पैसों में उलझा, कामनाओं में बीधा,

रहा जीवन भर आपाधापी में l


फिर भी, ख़ुद से न की, कभी बात लेकिन l


दूसरों से छीनकर अपनों पर लुटाना, 

समझ न आई ये बात लेकिन l

कुछ भी पा लो, कमी तो रह ही जाती है,

दौड़ धूप में व्यर्थ जीवन गँवाया l


फिर भी, ख़ुद से न की, कभी बात लेकिन l

बारिश में भीगो, परिंदों सा उड़ो, 

मिट्टी में उतरो नंगे पैर फिर से l

क्या जाने कब फूट जाये बुलबुला ये?


अरे, लेकिन को छोड़ो, काश को गोली मारो, 

ख़ुद से बात करो , फिर नई शुरुआत करो -2


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

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