जो शूल चुभते हैं हृदय में आज, भर देते हैं पीड़ा जीवन में, उनको अगर पुष्प बनाना है,
जीवन को यदि अपने महकाना है l
तो कष्टों को स्वीकारो, न बोलो असत्य स्वम् से,
रह जाओ दुनिया से पीछे और फिर असफलता ही क्यों न मिले l
झुका सिर और बढ़ते कदम तुम्हारे,
संचित और प्रारब्ध के सभी चिन्ह मिटायेंगे l
और तुम्हारी नदी को सागर में मिलाएंगे-2
जन्म और मृत्यु के बीच द्वन्द का जो ये खेल है-2
अंत में सारे खिलोने विलीन हो जायेंगे-2
कोई नहीं है अबतक, जो इस खेल में पूर्णतय विजयी हुआ हो, जिनको लगता है वो जीते हैं, बस वो ही जीवन से चूके हैं -2
हार का स्वीकार और समर्पण तो जीत की निशानी है l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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