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लेखक की तस्वीरVivek Pathak

हकीक़त

ख़ुद को सही बताने की ज़िद में,

खो देता हूँ मौका-ए-बेहतरी अक्सर l


सुन लेना उसको, सुकून से इस क़दर,

कि जानते हुए सबकुछ भी, कुछ नया सा लगे l


हो जाती है फ़ना, ज़माने को पा लेने कि, ये ज़िद मेरी,

जब भी फ़कीर सी मुफ़लिसी, होती है रौशन मुझमें ll


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


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