जब मेरी गाड़ी देखकर, वो रुक जाते हैं,-2
आँखों में ख़ुशी और प्यार से दुम हिलाते हैं l
ज़रूरी नहीं, हर बार उनको मुझसे कुछ चाहिए,
किसी मोड़ पर मैं, कहीं खड़ा हूँ, मुझसे मिलने यूँ ही चले आते हैं l
लोग कहते हैं, मैं उनके लिए बहुत करता हूँ,
कैसे बताऊँ, उनके लिए थोड़ा कुछ करके, मैं कितना सुख पाता हूँ l
अपने मानव होने का अहसास, और प्रखर होता है,
जब भी इन मासूमों के लिए कुछ कर पाता हूँ l
जब भी इन मासूमों के लिए कुछ कर पाता हूँ,
खुद को शिव के और निकट पाता हूँ l-2
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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