अहसान में किसे मिला है सुकून
और उधार में कहाँ राहत की सांस है-2,
जो बात अपनी थोड़ी सी कमाई में है,
वो कहीं और नहीं-2
कि जिम्मेदारिओं से भागकर,
बिना मेहनत किये कहाँ आराम है-2
और जो लोग, उसको पाने के लिए छोड़ देते हैं
घर-बार, त्याग देते हैं परिवार, तो कैसे संभव होगा ईश्वर का साक्षात्कार l
अपने कष्ट स्वीकारो और अपने सुखों को बांटो-2
और चलते रहो इसी में सार है-2
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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