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लेखक की तस्वीरVivek Pathak

समय की पूँजी

जब मैं बात करता हूँ,

तो कह नहीं पाता, जो कहना चाहता हूँ, 

और जो रह जाता हूँ मौन तो, 

कहते हैं लोग कि कुछ कहता नहीं l

वो कहते हैं पागल है, उल्टा चल रहा है ज़माने से,

और मैं कहता हूँ,

जी हुज़ूरी दुनिया की करके क्या पा लिया तुमने l


जीवन की असली पूँजी ‘समय‘ गँवा रहे हो, 

जो इक्कट्ठा कर भी लिया सब, तो जिओगे कब l

ज़रुरत सब की पूरी होती है, इक्छाएं नहीं, 

कभी कम नहीं होता जो मिला हुआ है,

और के चक्कर में, जो प्राप्त है उसे भी गँवा रहे हो l


मृत्यु के क्षण, व्यर्थ गंवाये जीवन की कीमत तो पता चल ही जाती है, मैं कहता हूँ कि जीवित रहते जागो, तो कहते हैं अभी समय नहीं l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

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