चमकना सूरज का देखकर, जल जाते हैं चाँद तारे l
पर किसीको नहीं दिखती,उसके ह्रदय की आग प्यारे l
कहते हैं मुझसे तंज़ में वो,कि बेजोड़ है तेरी सफलता,
पर कितनी बार टूटा और बिखरा हूँ,
इसकी नहीं ख़बर, किसी को प्यारे l
कितनी बार टूटा हूँ, कितनी बार बिखरा हूँ,
इसकी नहीं किसी को ख़बर प्यारे l
देखकर दूसरे की सफ़लता,अक्सर जलते हैं सभी l
पर असफ़लता के सागर में, खाये हैं गोते कितने,
ये न, किसी ने जाना कभी l
बिना तपे, बिना टूटे, बिना बिखरे,
जो भी मिलता है, रह जाती नहीं उसकी क़दर कभी l
पर मेहनत और संघर्षों के बाद जो मिले,
उसे छीन पता न कोई, तुमसे कभी l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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