मैं क्या हूँ? मुझमें मेरा सबकुछ तुम हो l
असमय पटका गया धरा पर, बीज से वट वृक्ष बना,
कारण तुम हो l
जीवन में जलके, राख से पहले, हुआ जो प्रकाश मुझमें,
कारण तुम हो l
कर्मों के दल दल से निकलने की, जो आस है मुझमें,
कारण तुम हो l
मेरी हर समस्या का निवारण तुम हो, जो भी अच्छा है सार्थक है मुझमें, कारण तुम हो l
मुझमें इस मिठास का भी कारण तुम हो l
मैं क्या हूँ? मुझमें मेरा सबकुछ तुम हो l
धरती में जीवन, जल में तृप्ति, सूरज में जो आग है,
कारण तुम हो l
जीव में प्राण तुम हो, निर्जीव का भार तुम हो,
जो नहीं है वो भी तुम ही हो, जो है उसमें भी तुम ही हो l
तुम ही कारण, तुम ही कर्ता, कार्य भी तुम ही हो,
समस्त अस्तित्व का, एकमात्र आधार भी तुम ही हो l
मैं क्या हूँ? मुझमें मेरा सबकुछ तुम हो l -2
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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