देख रहा हूँ स्वयं को जलते हुए.... घाट पर l
अभी भी कुछ आग बाकी है मुझमें,
होने से पहले राख.... घाट पर l
रंग सभी, रूप सभी, प्रेम सभी,संबंध सभी,
बिछड़ रहे हैं मुझसे.... घाट पर l
बाकी हैं कुछ वासनाएँ अब भी, कुछ प्रश्न बाकी हैं,
क्या मिलेंगे उनके उत्तर? चिंतित हूँ..... घाट पर l
छूट रहा है सब सदा के लिए-2
बाकी है बस एक आस...... घाट पर l
जिया जीवन भर जिससे मिलने की आस में-2,
बिछड़ के सबसे, क्या होगा उससे मिलन?
सोच रहा हूँ..... घाट पर l
देख रहा हूँ स्वयं को जलते हुए.... घाट पर l
अभी भी कुछ आग बाकी है मुझमें,
होने से पहले राख.... घाट पर l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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