तुम करने में फल की बात करते हो,
मैं करने को ही फल समझता हूँ ll
तुम पूजा मैं प्रसाद की बात करते हो,
मैं पूजा को ही प्रसाद समझता हूँ ll
तुम दुनिया की बात करते हो, मैं ख़ुद की बात करता हूँ ll
तुम दुःख के आँसू की बात करते हो,
मैं सुख के आँसू की बात करता हूँ ll
तुम पाकर और पाने की बात करते हो,
मैं पाकर चुकाने की बात करता हूँ ll
तुम दुनिया की बात करते हो, मैं ख़ुद की बात करता हूँ ll
तुम घाटे की बात करते हो, मैं घाट की बात करता हूँ ll
तुम फ़ायदे की बात करते हो, मैं कायदे की बात करता हूँ ll
तुम दुनिया की बात करते हो, मैं ख़ुद की बात करता हूँ ll
तुम प्यास की बात करते हो, मैं तर्पण की बात करता हूँ ll
तुम आस की बात करते हो, मैं विश्वास की बात करता हूँ ll
तुम दुनिया की बात करते हो, मैं ख़ुद की बात करता हूँ ll
तुम पंछी की बात करते हो, मैं उड़ान की बात करता हूँ ll
तुम महल की बात करते हो, मैं नींव की बात करता हूँ ll
तुम दुनिया की बात करते हो, मैं ख़ुद की बात करता हूँ ll
तुम बीज की बात करते हो, मैं बीज की यात्रा की बात करता हूँ ll तुम दिन-रात की बात करते हो, मैं संध्या की बात करता हूँ ll
तुम बाहर की बात करते हो, मैं भीतर की बात करता हूँ ll
तुम दुनिया की बात करते हो, मैं ख़ुद की बात करता हूँ ll
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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