ख़ामोश रह जाता हूँ, जब किसी को मज़बूर देखता हूँl -2
इंसान हो या जानवर, क्यों हर किसी के दर्द में ख़ुद को देखता हूँ l
नहीं सुहाती सफलता मेरी मुझको,
जब किसी को दो पैसे के लिये भी तरसता देखता हूँ l
दुःखी हूँ उद्देश्य विहीन युवाओं को देखकर,
परेशान हूँ दिशाहीन बचपन को देखकर,
हताश हो जाता हूँ, बोझ उठाते बुढ़ापे को देखकरl
ख़ामोश रह जाता हूँ, जब किसी को मज़बूर देखता हूँl
अक्सर पड़ जाती है बाप की कमाई कम,
बच्चों की ख्वाइशों के आगे, क्यों ?
माँ का प्यार, जीवनभर का दुलार, लगने लगता है बोझ, क्यों ?
माँ बाप से बुढ़ापे में अलग हों,
ऐसे बच्चों का पैदा ही हो जाना क्यों?
नए बनाने की होड़ में, पुराने संबंधों से मुँह मोड़ना, क्यों?
पाने के बाद भी और पाने की अंधी दौड़ में,
जीवन को यूं गँवाना, क्यों?
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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