भक्ति का एक क्षण है श्रेष्ठ, युगों के अर्जित ज्ञान से भी l
समर्पण के अश्रु के सन्मुख, निरर्थक रहते सभी वेद पुराण भी l
ज्ञान की सीमा भक्ति का आरंभ है l
भक्ति की परिणिति, ईश्वर से मिलन l
भक्ति और समर्पण में नतमस्तक, नेत्रों के जल की एक बूँद,
श्रेष्ठ है उस सागर से, जिसमें समाहित हैं समस्त ज्ञान की सरिताएँ भी l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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