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लेखक की तस्वीरVivek Pathak

प्रेमिका और पत्नी

प्रेमिका

चाय बनाना आता है तुमको?

कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l

बुरा वक्त आया और टाइम होगया पास,

तो ‘पापा नहीं मानेंगे’ कहती नज़र आओगी l


कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l


बहाने होंगे हज़ार मुझसे दूर होने के,

पर ग़म में साथ देने की हिम्मत नहीं जुटा पाओगी l


कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l


मैंने तो ख़ैर माफ़ कर दिया तुमको,

पर क्या तुम ख़ुद को माफ़ कर पाओगी ?


कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l


पत्नी

चाहत की हर चीज़ मिली है मुझे, जिससे, बिन माँगे, वो तुम हो l

हर कदम पर पाया है जिसका साथ मैंने , वो तुम हो l


जिसकी थी तलाश हमेशा मुझको, वो तुम हो l

यूं तो टूट ही गया था भरम इश्क़ का लेकिन,

जो भी प्रेम में बसी है आस्था मेरी, वो तुम हो , वो तुम हो l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

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