प्रेमिका
चाय बनाना आता है तुमको?
कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l
बुरा वक्त आया और टाइम होगया पास,
तो ‘पापा नहीं मानेंगे’ कहती नज़र आओगी l
कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l
बहाने होंगे हज़ार मुझसे दूर होने के,
पर ग़म में साथ देने की हिम्मत नहीं जुटा पाओगी l
कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l
मैंने तो ख़ैर माफ़ कर दिया तुमको,
पर क्या तुम ख़ुद को माफ़ कर पाओगी ?
कहती हो मेरी ज़िंदगी को जन्नत बनाओगी l
पत्नी
चाहत की हर चीज़ मिली है मुझे, जिससे, बिन माँगे, वो तुम हो l
हर कदम पर पाया है जिसका साथ मैंने , वो तुम हो l
जिसकी थी तलाश हमेशा मुझको, वो तुम हो l
यूं तो टूट ही गया था भरम इश्क़ का लेकिन,
जो भी प्रेम में बसी है आस्था मेरी, वो तुम हो , वो तुम हो l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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