जब मिलता है हमारे किये का परिणाम हमें,
तभी क्यों लगता है, कि जो किया, वही नहीं करना था हमें l
पिता दशरथ, शांतवन, जनक और वसुदेव तो होते ही हैं,
पर राम, श्रवण, सीता और कृष्ण होना है हमें l
फिर पिता रावण और हिरण्यकश्यप क्यों न हों,
मेघनाथ और ध्रुव होना है हमें l
पुत्र होना क्या है?
जो पिता को शत्रुओं और समस्याओं में कभी अकेला न छोड़ेl
जो पिता के चरणों में अपने सुख, सम्पत्ति, वैभव यहाँ तक कि, अपनी मुक्ति का भी बलिदान कर सके l
पिता से जब कष्ट और कठोरता ही मिले, तो ये बस कर्मों का ऋण है जो पुत्र को चुकाना है l
फिर भी राम, कृष्ण, श्रवण, सीता, मेघनाथ और ध्रुव होना संभव है l
इस और निरंतर प्रयासरत रहना ही, सच्चे अर्थों में पुत्र होना है l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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