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लेखक की तस्वीरVivek Pathak

तुम्हारा साथ

यौवन की धूप में युगल, प्रेम रत तो रहते ही हैं l-2


पर तुम्हारे माथे की सफ़ेदी में भी, 

प्रेम कम नहीं और बढ़ गया है l

जीवन की तपती धूप से, 

सावन की पहली बयार हो गया है l


रति से निवृत्ति की ये यात्रा,

हर किसी को नसीब नहीं होती l-2

पर तुम्हारे साथ ये सफ़र, आसान हो गया है ll-2


कहते हैं अंत में हर कोई, अकेला ही रहजाता है l

जैसे सुगंध को बिखेर के, पुष्प सूख जाता है ll-2 


सूखे पुष्प में बीज का, तुम्हारे साथ से, 

मैं सृजन बन जाता हूँ ll-2


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


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