उसने पूछा कि, आप जो कह रहे हैं,
मैं कैसे मानूँ कि वो सच है l
मैंने कहा, सच अगर मैं बोलूँ,
तो क्या तुम सुन पाओगे l-2
अकेले में आईने के सामने,
चार खरे प्रश्न ख़ुद से कर पाओगे l
वहाँ कोई दूसरा नहीं होगा, जिसे मूर्ख बना पाओगे l
तुम्हारा सच क्या है, तुम्हें मालूम ही है,
कहाँ तक उस सच से भाग पाओगे l-2
ख़ुद पर दया करो और स्वीकार लो, जैसे भी हो तुम l
क्यों कि स्वीकारे बिना,
इस कुचक्र से मुक्त नहीं हो पाओगे l
और जिसे कहते हो सुकून, कभी नहीं पा पाओगे l-2
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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