अब देखो अगले क्षण अगर मृत्यु है, तो भी भय कैसा? क्यों सोचते हो कि क्या होगा? पुत्र का क्या होगा? पत्नी का क्या होगा? सपनों का क्या होगा? अपनों का क्या होगा? किसके पास कितना समय है? यह जानकर भी, जीवन मैं वृद्धि का न एक क्षण भी होगा l जो मिटगए जवानी में ही कुछ करके, व्यर्थता के 100 वर्ष भी मिलें, तो जीवन नष्ट ही होगा l
व्यर्थ चिंताओं और जंजालों को छोड़कर, इस क्षण में पूरी तरह से जीना होगा l
अंत समय में जीवन को जानना, तो उसे खोने जैसा ही है, क्यों कि जीवनभर जो भी क्या? उसका सार ही उस क्षण में प्राप्त होगा l जो आवश्यक है उसे अभी करें, जोभी सपने हैं उस ओर अभी बढ़ें l समय नष्ट न करें यह सोचकर, कि कल क्या होगा?
व्यर्थ चिंताओं और जंजालों को छोड़कर, इस क्षण में पूरी तरह से जीना होगा l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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