समर्पण, जब मूर्खता का पर्याय हो जाये, बुद्धि की आजाये सीमा और रहजाय पराक्रम निरीह निरर्थक l
तो प्रयास करना है व्यर्थ, जब होना हो अनर्थ l
आशा के सभी सेतु, बिखर जाते हैं रेत से, प्रार्थना की सरिता भी, नहीं मिल पाती सागर से l जब अपने लगें पराये से और शत्रु की बात में लगे अर्थ l
तो प्रयास करना है व्यर्थ, जब होना हो अनर्थ l
अपमान के अनगिनत घावों से पटाहो मन, फिरभी रक्तरंजीत जीवन, कुमकुम सा लगे l किसीको पाने का ज़ुनून, प्रेम कम अहंकार की तृप्ति अधिक होजायेl
जब धूमिल होने लगे, सही और ग़लत का अर्थ l
तो प्रयास करना है व्यर्थ, जब होना हो अनर्थ l
अपने ही कर्मफल का कारण, लगने लगे कोई और बुज़ुर्गों की अनुभव जनित सभी सलाहें, लगने लगें व्यर्थ l तो प्रयास करना है व्यर्थ, जब होना हो अनर्थ l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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