छुद्र माँगकर, विराट की संभावनाओं को कम न कर l
जो मिलना है मिलकर ही रहेगा,
तू सही दिशा में प्रयासों को तो, कम न कर l
हर किसी में, वह होने की संभावना है,
जग में रहकर हर पल न सही,
कुछ देर तो अंतर में विश्राम कर l
भय ही सबसे बड़ा शत्रु है, कल क्या होगा? को छोड़, आज में तो पूरी उड़ान भर l
जो छूट रहा है छूटने दे, जो टूट रहा है टूटने दे,
पहले, आज को तो पूरी तरह स्वीकार कर l
आज में ही जन्मेगा, कल का अंकुर,
भविष्य की योजनाओं में, समय बर्बाद न कर l
ज्ञान को सूचना बना, पुस्तकों में न धर,
जो जाना है उसे, जीवन में उतारने का प्रयास तो कर l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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