खुदगर्ज़ हूँ बहुत, कि ग़म में याद करता हूँ तुझे l -2
जब तक छिने न खिलोने हाथ से,
जब तक छूटे न साथ प्यारों से,
जब तक न हो जेब ख़ाली l
समझा जिनको सदा अपना,
जब तक न बन जाए, वो सब सवाली l
कहाँ तेरी याद आती है?
खुदगर्ज़ हूँ बहुत, कि ग़म में याद करता हूँ तुझे l -2
और तू है कि, थाम लेता है हर बार हाथ मेरा,
इससे पहले कि, हार जाऊँ मैं ज़माने से l
पक के गिर जाता है ज्यूं, साख से फल,
चाहता हूँ अलग हो जाऊँ, यूं ही मैं ज़माने से l
छूटेगी न जब तक चाहत, फिर तेरी ही क्यों न हो, -2
कहाँ तुझे याद कर पाऊँगा तुझे पूरी तरह,
कहाँ तुझसे मिल पाऊंगा पूरी तरह l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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