कारण बन ही जाता है, भोगने हों अगर कष्ट तो l
राहें खुल ही जाती हैं, मिलनी हों अगर मंज़िलें तो l
कहाँ बच सका है सागर तपने से,
होनी हो अगर बारिश तो l
अवश्य ही कोई कारण है हर कार्य का, और है संभव, कोई न कोई परिणाम हर कार्य का l
फिर कहना कि, ये क्योँ हुआ? या कि,ये क्योँ नहीं हुआ? बेमानी है l
तुम्हारा किया ही तुम्हारी स्थिती का है कारण, पर परिणाम कैसा होगा?, ये सिर्फ तुम पर है निर्भर l
स्वीकारो स्थिती, संभव का करो प्रयास, फिर चाहे मिले पूर्ण तृप्ति या कि रह जाये अनंत प्यास l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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