कलयुग में,
होगा जिससे अधिक प्रेम, वही ह्रदय तोड़ेगा l
जो चाहोगे होना, बस वही होने में संशय रहेगा l
जिसको पाने का होगा,सबसे अधिक प्रयास,
वही न होगा कभी पास l
सत्य सिद्दांत का मार्ग होगा दुष्कर,
झूट कपट दिखावा, सहज सरल होगा l
मौका परस्त विजयी दिखेगें, सत्य संकल्पियों का मार्ग, कंटकों से पटा होगा l
माया रुपी कलि वैभव से भरा और सत्य को केवल ‘हरि-हर’ नाम का सहारा होगा l
जिसने छोड़ा ‘मैं’ का साथ, जोभूला ‘मेरा’ क्या होगा?
राम नाम ‘भक्ति’, कृष्ण नाम ‘कर्म’, शिव सा जो परोपकारी होगा l
कलि की भस्म उसके माथे, विजयी मुकुट उसके सर होगा l
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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