सदमार्ग पर चलकर, असफलता ही क्यों न मिले l-2
असहाय के रक्षण में, मृत्यु ही क्यों न मिले l-2
प्रेम के बदले धोका और
विश्वास करके घात ही क्यों न मिले l-2
कुछ भी कर लो, मिलने हैं अगर कष्ट तो,-2
मिलकर ही रहेंगे l
तो फिर पोंछ के किसी के आँसू,
लाकर किसी के मुख पर मुस्कराहट l-2
किसी गिरते को सम्हालकर, निराश के मन में,
आस का दिप प्रज्वलित कर, क्यों न जिया जाये l-2
बदले में फिर जोभी मिले, स्वीकार कर लिया जायेl-2
इस तरह अपने कर्मोँ के बोझ को, -2
कुछ और कम कर लिया जाये l-2
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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