top of page
खोज करे
लेखक की तस्वीरVivek Pathak

अब कुछ अलग है

वही दुनिया है, वही मैं भी हूँ, पर फिर भी,

पहले से सबकुछ अलग है l

दौलत है, शोहरत है, पाने को,

फिर भी ख्वाइश-ए-दिल, अब कुछ अलग है l

जुड़ा तो हूँ ज़माने से, पर मरासिम-ए-ज़माना,

अब कुछ अलग है l

तन्हा भी हूँ, हूँ भीड़ में भी, पर एहसास-ए-तन्हाई,

अब कुछ अलग है l

सुना तो था, कि तुझको पाना ख़ुद को खोना है,

पर ख़ुद से जुदाई का सफ़र और इतना ख़ुशनुमा,

ये राह और ऐसा रहगुज़र,

मंज़िल की चाह , अब कुछ अलग है l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक


3 दृश्य0 टिप्पणी

हाल ही के पोस्ट्स

सभी देखें

है स्वीकार

तुझसे मिली खुशियाँ क़ुबूल हैं जब, तो फिर ग़म से भी, नहीं है एतराज़ l आती है ख़ुशबू गुल से जब, तो शूल जो दर्द मिले, वो भी हैं स्वीकार l उतरती...

द्वन्द

उदास हो जाता हूँ, जब चाहकर भी, किसी की मदद के लिए रुक नहीं पता हूँ l जल्दी में हूँ, हूँ भीड़ में, चाहकर भी मुड़ नहीं पाता हूँ l मन कुछ कहता...

मूर्खता का प्रमाण

यूँ ही परेशां हूँ, कि ये न मिला वो न मिला, पर जो मिला है उसे गिनता ही नहीं l जब देखता हूँ ग़म दूसरों के, तो लगते अपने ग़म कुछ भी नहीं l...

Comentários


bottom of page