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लेखक की तस्वीरVivek Pathak

शायद

मिली है पीड़ा दुनिया से बहुत, 

फिर भी न जाने क्यों? आस बाकी है l


जानता हूँ शराब-ए-दुनिया मार देगी एक दिन, 

फिर भी रास्ता-ए-मयख़ाने की याद बाकी है l


कर-कर के तौबा हर बार भटका हूँ, 

न जाने क्यों फिर भी, थोड़ा यकीन बाकी है l


ख़ुद का किया ही भुगत रहा हूँ शायद, 

नहीं मिलेगा सुकून जब तक, 

मुझमें ये ‘शायद’ बाकी है l


विवेक गोपाल कृष्ण पाठक

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