अपनों ने जो तोडा दिल तो पता चला,
कि जो गैरों से मिला था वो दर्द ही न था l
ज़िन्दगी में दर्द का होना तो लाज़मी है,
पर दर्द ऐसे भी होते हैं, ये पता न था l
हाँ मैंने भी चाहा था कुछ,
बदले में, उनसे, कैसे बताऊँ,
कि प्रेम के सिवा कुछ और न चाहा था l
ख़ैर बताने, जताने, समझाने के दौर हुए,अब ख़त्म l
अपने अँधेरे और अपनी रौशनी के साथ,
अपनी राह पर, अब अकेले हैं हम…
हाँ अपनी राह पर, अब अकेले हैं हम…
विवेक गोपाल कृष्ण पाठक
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