वृक्ष की अभिलाषा
उखड़ भी गया, अपने कर्मों की बाढ़ से तो भी, धरा पर गिर, बीज से फिर वृक्ष हो जाऊँगा l न मिली सरिता, सागर तक पहुंचने के लिए तो भी, टिका रहूँगा...
वृक्ष की अभिलाषा
खुदगर्ज़ हूँ बहुत
न शिक़ायत है अब, न शिक़वा कोई
आगे बढ़ो और बढ़ते रहोl
जग से कुछ अलग कर
I am God l अनल-हक l अहंब्रह्ममास्मि
कैसे मिलेगा सुकून?
ज़िन्दगी का सुकून
हूँ मैं धर्म सापेक्ष
कर्मोँ के बोझ को कम कर लिया जाये
राम नाम के तेल में हनुमत जैसी बाती
तुम्हारा सच
वो क़िताब
संघर्ष और सफ़लता
ग़लती और ग़ुनाह
सरल होना ही बुद्धिमान होनाहै
तुम्हारा साथ
मृत्यु का स्वीकार
परिवर्तन का अनुभव
दुविधा